Monday, June 29, 2009

Confident Lion barking commonsense...

Don't know if its a mystery or misery of the dog to be taken as Lion, or its the confidence of some persons to take a dog as a lion.It doesn't mean that with a new hair cut you can turn a dog into a lion. Confidence can boost your morale but doesn't change your characteristics. So even the deepestestsest....feeling can't turn a dog into a lion.

Need your comments on this...

Wednesday, June 24, 2009

Mail from Sudhesh for all Members

Daily passenger Union Zindabad Zindabad

Long live Union!

Hi Dear Vishan? How are you and other members of the union. Please convey my best wishes to all of the members. They are not only member but also dearest friends and during my very short span with them, I feel that I have come across some of the loveliest creatures of Almighty God. I really grateful to you. In short, I can only say that in my whole life I will never forget your company and I wish you all remain together and help each other in the tumultuous journey of life in this fictitious world.

How can I be so selfish, if I do not pay my gratitude to a true friend like you. I really grateful to you my dearest little brother.

Once again, please convey my gratitude to all of the members of the Union.

With warm regards.

Yours ever

Sudesh Kumar.

A little poem for you all.



मिट्टी का तन
मस्ती का मन
क्षणभर जीवन
मेरा परिचय!

and

मेरे गुनाहों को वो कुछ इस कदर धो देती है,
बहुत गुस्से में होती है माँ,तो रो देती है...


इस छोटी सी जिन्दगी के,
गिले-शिकवे मिटाना चाहता हूँ,
सबको अपना कह सकूँ,
ऐसा ठिकाना चाहता हूँ,
टूटे तारों को जोड़ कर,
फिर आजमाना चाहता हूँ,
बिछुड़े जनों से स्नेह का,
मंदिर बनाना चाहता हूँ.
हर अन्धेरे घर मे फिर,
दीपक जलाना चाहता हूँ,
खुला आकाश मे हो घर मेरा,
नही आशियाना चाहता हूँ,
जो कुछ दिया खुदा ने,
दूना लौटाना चाहता हूँ,
जब तक रहे ये जिन्दगी,
खुशियाँ लुटाना चाहता हू.


मैं न जानू की कौन हूँ मैं,
लोग कहते है सबसे जुदा हूँ मैं,
मैने तो प्यार सबसे किया,
पर न जाने कितनो ने धोखा दिया।

चलते चलते कितने ही अच्छे मिले,
जिनने बहुत प्यार दिया,
पर कुछ लोग समझ ना सके,
फिर भी मैने सबसे प्यार किया।

दोस्तो के खुशी से ही खुशी है,
तेरे गम से हम दुखी है,
तुम हंसो तो खुश हो जाऊंगा,
तेरे आँखो मे आँसु हो तो मनाऊंगा।

मेरे सपने बहुत बढे़ है,
पर अकेले है हम, अकेले है,
फिर भी चलता रहऊंगा,
मजिंल को पाकर रहऊंगा।

ये दुनिया बदल जाये पर कितनी भी,
पर मै न बदलऊंगा,
जो बदल गये वो दोस्त थे मेरे,
पर कोई ना पास है मेरे।

प्यार होता तो क्या बात होती,
कोई तो होगी कहीं न कहीं,
शायद तुम से अच्छी या,
कोई नहीं नही इस दुनिया मे तुम्हारे जैसी।

आसमान को देखा है मैने, मुझे जाना वहाँ है,
जमीन पर चलना नही, मुझे जाना वहाँ है,
पता है गिरकर टुट जाऊंगा, फिर उठने का विश्वास है
मै अलग बनकर दिखालाऊंगा।

पता नही ये रास्ते ले जाये कहाँ,
न जाने खत्म हो जाये, किस पल कहाँ,
फिर भी तुम सब के दिलो मे जिंदा रहऊंगा



किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा

कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा

किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा

और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा

अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा


ज़माने के अन्दाज़ मे ढलता क्यों नहीं
मैं वक्त के साथ बदलता क्यों नहीं
बच्चों सा मासूम क्यों घूमता हूं आज भी
तजुर्बे की आँच में पिघलता क्यों नहीं

पीले ही नहीं पड़ते मेरी चाह्तों के पन्ने
मेरे दोस्तों का नाम बदलता क्यों नहीं
राहों मे मिलने वाले बन जाते हैं राह्बर
मैं अकेला कभी सफ़र पे निकलता क्यों नहीं

हँस भी नहीं पाते जिन चुटकुलों पे और सब
हँस-हँस के उनपे मेर दम संभलता क्यों नहीं
निकल पड़ता हूँ कर के जो इरादा पक्का
नाकामियों पे भी हाथ मैं मलता क्यों नहीं

ना जाने क्यों ऐसा बनाया है खुदा ने मुझे
इस खुदगर्ज़ जहाँ मे क्यों सजाया है मुझे
शायद उसे भी पुरानी चीज़ों से लगाव है
शायद यही वज़ह कि मेरा ऐसा ही स्वभाव है

कि काले बादलों मे सुनहरे किनारे नज़र आते हैं
इस दौर में भी मुझे लोग प्यारे नज़र आते हैं
ना जाने ज़माने से क्यों इतना जुदा हूँ मैं
लगता है कि नये शहर में गुमशुदा हूँ मैं

मैं वो गीत हूँ जो अब कोई सुनता नहीं
हकीकत के हादसों में सपना कोई बुनता नहीं
ज़माने के अन्दाज़ मे ढलता क्यों नहीं
मैं वक्त के साथ बदलता क्यों नहीं............

The Speaking Tree

"He who speaks, only speaks, doesn't listen or agree to what you say" - This is the mantra of our cab. We have a unique time passing method and that's discussion (hardly any meaningful). We can discuss on anything almost from Rahul Gandhi's Marriage to reasons of wearing spectacles by a women on bike, you say anything and we discuss on it without reaching to any conclusion - because conclusion ends the debate. Except few we all are experts in speakalogy(fattebaj) who can speak on anything, anytime, anywhere.

Survival of the Speakeast
Speak to survive, survive and speak, The idea is just speak, don't leave any chance.


NOTE:
Please don't take anything personal, its just for fun, read/comment and enjoy.

Tuesday, June 23, 2009

Completing 2 years in CAB

Recently we completed our two years in CAB. During this 2 years we have seen many ups and downs and i can say that we are the bravest of the braves who can handle all the meaningless, unwanted, stupidest, nonsenses, GKs that can make you look insane, drivers giving you almost an attack.

So i will request all the ex/current members to please write your experiences with us.

Do you guys know how much time we have spent in traveling from R2G and back. Simple calculations. Oldies please don't scratch your heads :)

170 minutes per day
850 minutes per week
44200 minutes per Year
88400 minutes in 2 years
1473 hours in 2 years
62 days in 2 years

The interesting fact is that we work for only 261 days in a year and time spent in reaching office is 31 days i.e. almost 12% of the work days. Great effort isn't it.

I have sent invitation to all new members, if you face any difficulty in creating posts please manage yourself and don't bother me.

Monday, February 18, 2008

Time to do BC!

Hi,

Thought we should have a blog where we all daily goers [@#$##] share our nonsenses instead of filling our official and personal mails...

What do you guys think...


Vishan